कब जाओगे कोरोना..

‘अतिथि देवो भव:’ कई बार सुना लेकिन जाना पहली बार कि अतिथि केवल देवता नही, राक्षस भी हो सकता है

मेहमान नवाजी का ये कौन सा तरीका है ? कोई रुकता है क्या इतने दिन ! तुम तो कुंभकर्ण की तरह लम्बी ही जमा कर बैठ गए और अब तुम्हारे जाने की कोई संभावना नजर नहीं आती। जरूर तुम्हारे देश मे खाने-पीने की प्रॉब्लम है तभी तो भूख से बिलबिलाए यहाँ से वहाँ भटक रहे हो। क्या तुम्हें अपना चायना याद नहीं आता? क्या तुम्हे तुम्हारी जन्म भूमि यानि बुहान की लैब भी नहीं पुकारती जहाँ तुम पैदा हुए हो ?

मैं जानता हूं कि तुम्हें यहाँ कि आवो हवा पसंद आ रही होगी, स्वाभाविक है, सबको दूसरों के घर में अच्छा लगता है। मगर घर को सुकून भरा आशियाना और होम को स्वीट होम इसीलिए तो कहा जाता है कि सब अपने-अपने घर में शांतिपूर्वक रहें। बुलाने पर ही किसी के घर आयें और मिल-मिलाकर वापिस अपने घर लौट जाएं

गलती कर दी, जिस दिन तुमने अपने हाथ-पैर ‘वुहान इंस्टीटयूट ऑफ वायरलॉजी’ से बाहर निकाले उसी दिन समझ लेना चाहिए था कि तुम बिना बुलाये मेहमान किसी हैवान से कम नही। सच पूछो तो तुम किसी के सगे भी नही, तुम्हारे जन्म दाताओं ने तुम्हे हथियार की तरह इस्तेमाल करना चाहा, और तुम उन पर ही भारी हो गए। तुम्हारी शान में कसीदे पढ़ते, अपनी TRP चमकाते दुनियाँ के तमाम चैनल अपनी सुध-बुध ही खो बैठे और तुमने इकोनॉमिक लेवल गिराकर उनकी ही दुकान बंद कर दी और फिर शुरू हुआ हर तरफ लोक डाऊन।

बाजार बंद है, होटल्स-रेस्टोरेंट और मॉल बंद है, चाट और फास्टफूड के ठेले भी बंद है। ट्रेन-बस-हवाई जहाज बंद, लोगों का आना-जाना बंद है, यहाँ तक कि समंदर किनारे अंधेरे कोने में मनचलों का प्रेमलाप भी बंद।

पान की दुकानें बंद,चाय सिगरेट की गुमठी बंद, ऑफिस-स्कूल बंद।क्लब-पार्टियाँ बंद, शादी ब्याह में फोकट में मिलने वाली दावते बंद, पीकर झूमकर लड़खड़ाना बंद। पड़ोसन की कैंची सी चलने वाली जुबान बंद और तो और नज़रे मिलाने पर मुस्कराना भी बंद।

पहले बीबी की एक ही शिकायत रहती थी कि घर के लिए टाइम नही निकालते और अब लॉकडाउन में वही पूछती है, ‘कब तक रहोगे घर मे,ऑफिस कब जाओगे?’ मै जवाब में कंधे उचका देता हूं. क्योकि इस तरह के सवाल का जवाब मेरे तो क्या किसी के पास नही। अब तो हम सब का एक ही सवाल है कि तुम्हारा बिस्तर कब गोल होगा अतिथि?

कुछ समय पहले तक जिम- जुम्बा और डांस की क्लासेस में फिट रहने वाली पत्नियां तुम्हारी वजह से आज वीडियो कॉल करने से भी बचती है क्योंकि काम वाली के ना आने पर घर का सारा काम उन्ही के जिम्मे जो आ गया है। उनकी सुबह 8 बजे की जगह 5 बजे होने लगी है और तो और बिस्तर पर जाने का समय भी आगे खिसक गया है और आते ही ऐसी गहरी नींद में जाती हैं कि पूछो मत। सुबह उठते ही फिर बच्चों की फरमाइश, मुझे ये बना दो, मुझे वो खाना है।

कारवाँ के गीतों से शुरू होने वाली सुबह सिंक में पड़े बर्तनों को रगड़ने से शुरू होने लगी है। दो-चार बर्तन हाथ से छूटने पर ही पूरी नींद खुलती है। ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर का सिस्टम सब तुम्हारी वजह से टूट चुका है। दिन भर नई-नई डिश की तैयारी, इंस्टाग्राम पर पोस्ट डालने के लालच में गूग्गल बाबा की मदद से हर दिन एक डिश, जिसकी तारीफ करना घर के हर मेम्बर के लिए अनिवार्य। अगर तारीफ को सिरियस ले लिया तो अगले दिन फिर उस बोरिंग डिश को झेलना और अगर गलती से सच निकल आये तो श्रीमती जी को झेलना और उससे बचने के लिए गलती से घर से बाहर आये पुलिस वालों को झेलना। ज़िन्दगी नरक बना कर रख दी है तुमने!

क्या-क्या जतन नही किये तुमसे पीछा छुड़ाने के लिए, थाली बजाई – ताली बजाई सोचा कि तुम चले जाओगे । घरों में घुप्प अंधेरा भी किया कि शायद डर कर भाग जाओ लेकिन तुम एक नंबर के लंपट निकले। तुम्हारी उपस्थिति यूं रबर की तरह खिंचेगी, कभी सोचा न था !

तुम्हारी वजह से अब बंद कमरो के आकाश में ठहाकों के रंगीन गुब्बारे नहीं उड़ते यहां तक कि जोक्स के पिटारे खत्म हो गए है रिपीट टेलीकॉस्ट देख-देखकर सब बोर हो गए हैं डिस्कस करने को अब कोई सब्जेक्ट ही नही रहा।

जिस सोफे पर टांगें पसारे मैं अभी बैठा हूँ उसके ठीक सामने एक कैलेंडर लगा है जिसकी फड़फड़ाती तारीखें देख हर रोज बस यही प्रश्न मेरे मन में उमड़ता है, कि तुम कब जाओगे बिना बुलाये अतिथि?

तुम कब इस देश से निकलोगे ?

……….पवन सक्सेना

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